Blog : आलोचना का भी करें प्रबंधन

चाणक्य ने कहा है "मूर्ख कभी प्रिय नहीं बोलता और स्पष्ट वक्ता कभी धूर्त नहीं होता। आलोचक के आक्षेप तुम्हारे प्रतिकूल नहीं होते।"

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Friday, February 8, 2013

वैलेंटाइन डे की कहानी - पूजा सिंह

यूरोप (और अमेरिका) का समाज जो है वो रखैलों (Kept) में विश्वास करता है पत्नियों में नहीं, यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या मिहला मिले जिसकी एक शादी हुई हो, जिनका एक पुरुष से या एक स्त्री से सम्बन्ध रहा हो और ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके यहाँ | आपने एक शब्द सुना होगा "Live in Relationship" ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अिभजात्य वगर् में चल रहा है, इसका मतलब होता है कि "बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना" | तो उनके यहाँ, मतलब यूरोप और अमेरिका में ये परंपरा आज भी चलती है,खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) का एक स्त्री से सम्बन्ध नहीं रहा, प्लेटो ने लिखा है कि "मेरा 20-22 स्त्रीयों से सम्बन्ध रहा है" अरस्तु भी यही कहता है, देकातेर् भी यही कहता है, और रूसो ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "एक स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It's Highly Impossible" | तो वहां एक पत्नि जैसा कुछ होता नहीं | और इन सभी महान दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती" "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये " | तो बीच-बीच में यूरोप में कुछ-कुछ ऐसे लोग निकले जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इन रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की | उन कुछ लोगों में से एक ऐसे ही यूरोपियन व्यक्ति थे जो आज से लगभग 1500 साल पहले पैदा हुए, उनका नाम था - वैलेंटाइन | और ये कहानी है 478 AD (after death) की, यानि ईशा की मृत्यु के बाद |

उस वैलेंटाइन नाम के महापुरुष का कहना था कि "हम लोग (यूरोप के लोग) जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं कुत्तों की तरह से, जानवरों की तरह से, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (venereal disease) होते हैं, इनको सुधारो, एक पति-एक पत्नी के साथ रहो, विवाह कर के रहो, शारीरिक संबंधो को उसके बाद ही शुरू करो" ऐसी-ऐसी बातें वो करते थे और वो वैलेंटाइन महाशय उन सभी लोगों को ये सब सिखाते थे, बताते थे, जो उनके पास आते थे, रोज उनका भाषण यही चलता था रोम में घूम-घूम कर | संयोग से वो चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को यही बताते थे, तो लोग उनसे पूछते थे कि ये वायरस आप में कहाँ से घुस गया, ये तो हमारे यूरोप में कहीं नहीं है, तो वो कहते थे कि "आजकल मैं भारतीय सभ्यता और दशर्न का अध्ययन कर रहा हूँ, और मुझे लगता है कि वो परफेक्ट है, और इसिलए मैं चाहता हूँ कि आप लोग इसे मानो", तो कुछ लोग उनकी बात को मानते थे, तो जो लोग उनकी बात को मानते थे, उनकी शादियाँ वो चर्च में कराते थे और एक-दो नहीं उन्होंने सैकड़ों शादियाँ करवाई थी |

जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय रोम का राजा था क्लौड़ीयस, क्लौड़ीयस ने कहा कि "ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं, और ये शादियाँ करवाता फ़िर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है, हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है", तो क्लौड़ीयस ने आदेश दिया कि "जाओ वैलेंटाइन को पकड़ के लाओ ", तो उसके सैनिक वैलेंटाइन को पकड़ के ले आये | क्लौड़ीयस नेवैलेंटाइन से कहा कि "ये तुम क्या गलत काम कर रहे हो ? तुम अधमर् फैला रहे हो, अपसंस्कृति ला रहे हो" तो वैलेंटाइन ने कहा कि "मुझे लगता है कि ये ठीक है" , क्लौड़ीयस ने उसकी एक बात न सुनी और उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, मतलब शादी करना जुर्म था | क्लौड़ीयस ने उन सभी बच्चों को बुलाया, जिनकी शादी वैलेंटाइन ने करवाई थी और उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दिया गया |

पता नहीं आप में से कितने लोगों को मालूम है कि पूरे यूरोप में 1950 ईःवी तक खुले मैदान में, सावर्जानिक तौर पर फाँसी देने की परंपरा थी | तो जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी वो बहुत दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | मतलब ये हुआ कि वैलेंटाइन, जो कि यूरोप में शादियाँ करवाते फ़िरते थे, चूकी राजा ने उनको फाँसी की सजा दे दी, तो उनकी याद में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | ये था वैलेंटाइन डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार |

अब यही वैलेंटाइन डे भारत आ गया है जहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है यहाँ तो कोई बिना शादी के घूमता हो तो अद्भुत या अचरज लगे लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है | अब ये वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में आ गया है और बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं | और जो कार्ड होता है उसमे लिखा होता है " Would You Be My Valentine" जिसका मतलब होता है "क्या आप मुझसे शादी करेंगे" | मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वो समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड देना चाहिए तो वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये ही कार्ड वो दे देते हैं | और इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचना है, जिनको चाकलेट बेचनी हैं और टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया | ये सब लिखने के पीछे का उद्देँशय यही है कि नक़ल आप करें तो उसमे अकल भी लगा लिया करें | उनके यहाँ साधारणतया शादियाँ नहीं होती है और जो शादी करते हैं वो वैलेंटाइन डे मनाते हैं

Wednesday, February 6, 2013

विश्व गुरू रहे भारत को आत्मघाती हुक्मरानों ने धकेला पतन के गर्त में....

कभी विश्व गुरू व सोने की चिडिया रहे भारत को आत्मघाती हुक्मरानों ने धकेला पतन के गर्त में कभी भारत विश्व में अपने ज्ञान विज्ञान के रूप में जगतगुरू के रूप में जाना जाता था। यहां विकास व वैभव का सागर अंगडाई लेता था इसी कारण संसार भर में इसे सोने की चिडिया कहा जाता था। इसकी प्रसिद्ध के कारण ही चंगैज, गजनवी, मुगल, सिकंदर व यूरोपिय लुटेरे भारत पर काबिज होने के लिए बारबार आक्रमण करते थे। 1947 में विदेशी लुटेरों से भले ही भारत को आजादी मिल गयी हो परन्तु आजाद भारत की नींव को पश्चिमी संस्कृति के मोहपाश में बंधे भारतीय हुक्मरानों ने प्राचीन गौरवशाली भारतीय संस्कृति का अनुशरण करने के बजाय हिंसा, लूटमार व शोषण की बुनिया पर खड़ी पश्चिमी सभ्यता की तरह रखने का आत्मघाती भूल की। उसी की वजह है कि आज एक तरफ हमारे आजादी के समय ही अपने विकास का सफर करने वाला चीन, जापान, इस्राइल आदि देश विश्व में अपना परचम फेहरा रहे है। वहीं भारत आजादी के 65 साल बाद भी अपनी भाषा को ही नहीं अपितु अपने नाम के लिए भी तरस रहा है। भारतीय पतन की इतनी शर्मनाक स्थिति है कि उसी फिरंगी तंत्र व भाषा को भी आजादी के बाद बेशर्मी से ढोते हुए खुद को विश्व का सबसे बडी लोकशाही का तकमा दे रहा है। 

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी शर्मनाक है कि यहां देश की राजधानी के नामी चिकित्सालय सफदरगंज में ही विगत पांच साल में 8 हजार से अधिक बच्चे इस अस्पताल में इस अस्पताल की बदहाली के कारण दम तोड़ चूके है। देश के दूरस्थ क्षेत्रों में तो पहले अस्पताल ही नहीं है तो वे डाक्टर व दवा के बगैर खुद ही बीमार पडे है। भारत में शिक्षा की स्थिति इस बात से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कभी विश्व में ज्ञान विज्ञान के कारण जगतगुरू की पदवी पर सम्मानित भारत के आज स्थिति इतनी शर्मनाक है कि पूरे विश्व के प्रथम मानक रखने वाली 200 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय का नाम तक नहीं है। देश में जनप्रतिनिधी व नौकरशाह इतने भ्रष्ट हो गये हैं कि देश के अधिकांश दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार के मामले पर एक दूसरे को संरक्षण देने के कारण न्याय की देहरी में ही दम तोड़ रहे है। देश की सरकारें इतनी पतित हो गयी है कि देश के संसाधनों को लूट कर भ्रष्ट लोगों ने विकास के पैसे को विदेशों में छुपा रखा हे। देश में धर्म के नाम पर संकीर्णता व कटरपंथ ही सर उठा कर देश की एकता व अखण्डता को तबाह करने में तुले हुए है। यही नहीं देश के हुक्मरान भारतीय हितों के बजाय अमेरिका व अपने निहित स्वार्थो के लिए देश के हितों को दाव पर लगा रहे है। देश की संसद, कारगिल, मुम्बई सहित पूरे देश को आतंकी हमलों से लहूलुहान करने वाले पाक व उसके संरक्षक अमेरिका को मुहतोड़ जवाब देने के बजाय देश के हुक्मरान नपुंसकों की तरह दोस्ती की पींगे बढ़ा कर विश्व में भारत की जगहंसाई करा रहे हैं। हालत इतनी शर्मनाक हो गयी है कि देश की सीमा की सुरक्षा में लगे सैनिकों का सरकाटने की धृष्टता पाकिस्तान करता है इसके बाबजूद भी भारतीय हुक्मरानों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती है।  

देश में कानून व्यवस्था की हालत कितनी अराजक है इसका नजारा 16 दिसम्बर को देश की राजधानी दिल्ली में 23 वर्षीया छात्रा के साथ हुए सामुहिक बलात्कार से जग जाहिर हो गयी। इसके दोषियों को सजा देने में देश के हुक्मरान कितने अनमने रहे यह भी स्पष्ट हो गया है। इस काण्ड के बाबजूद दिल्ली में 5 फरवरी को लाजपत नगर के समीप जलविहार में एक 24 वर्षीय युवती से बलात्कार की कोशिश करने में नकाम रहने पर अपराधी ने उसके गले में लोहे की राड ही डाल कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। यही नहीं 26 जनवरी की परेड़ में सम्मलित होने आये पूर्वोत्तर की छात्राओं से जिस प्रकार से संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से गुवाहाटी जाते समय सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) जवानों पर छेड़छाड़ किया। इन 9 आरोपी जवानों को मुगलसराय स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया। यही नहीं केवल आम युवक या सामान्य लोग ही इस मामले में जिम्मेदार है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यानी आईएएस शशिभूषण जो उप्र सरकार के विशेष सचिव (तकनीकी शिक्षा) पर पर आसीन थे उन्होंने अक्टूबर 2012 में गाजियाबाद से लखनऊ समय लखनऊ मेल में सफर कर रही एक युवती से साथ दुष्कर्म की कोशिश जिसको रेल में सुरक्षा बल ने पकडा उसके बाद उसे े जेल भेजा गया। यही नहीं नवम्बर 2012 में भिवानी से कानपुर जाने वाली कालिंदी एक्सप्रेस ट्रेन के एसी कोच में कानपुर के सेशन जज की पुत्री अपने पति के साथ कानपुर जा रही थी। उसके साथ शिकोहाबाद व मैनपुरी के बीच फतेहगढ़ के मेजर एसडी सिंह मेडिकल काजेल के प्रोफेसर डॉ. जय किशन ने छेड़छाड़ करने के आरोप में फर्रूखाबाद जीआपी थाने में मामला दर्ज किया गया। ऐसे मामले में नेता से लेकर बडे अधिकारी लिप्त होने की खबरे आये दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होने पर भारत में कानून व्यवस्था की स्थिति जगजाहिर हो जाती है।  

देश की सत्ता में आसीन मनमोहनी सरकार के कुशासन से आम जनता की जीना हराम कर रखा है। सत्तासीन कांग्रेस पाटी के नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी ,जनता को सुशासन देने व ऐसे मनमोहनी कुशासकों को हटाने के बजाय घडियाली आंसू बहा कर जनता की आंखों में धूल झोंक रहे है। मुख्य विपक्षी दल में सरकार के कुशासन के खिलाफ प्रचण्ड संघर्ष करने के बजाय कौन बनेगा प्रधानमंत्री बनने के दीवास्वप्न में खो कर अपने दल व देश की जनता की आशाओं पर बज्रपात कर रहे हैं। परन्तु न तो देश के हुक्मरानों व नहीं देश की जनता में जरा सी भी चू तक हो। विश्व बैंक की एक आर्थिक विकास रिपोर्ट के अनुसार जहां चीन विश्व की सबसे तेजगति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गयी है। सन् 2012 में चीन की आर्थिक विकास दर 7.8 रही है। वहीं भारत की 4.5 फीसद रही । एशिया के इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, थाईलैंड और वियतनाम में आर्थिक विकास की रफ्तार दर 5.7 रही. इन देशों से ही नहीं अपितु भारत की विकास की दर से भारत के पडोसी देश बांग्लादेश में विकास दर से भी कम रही।आईएमएफ के रिसर्च विंग के प्रमुख थॉमस हेलबलिंग के अनुसार भारत में गत वर्ष विदेशी निवेश कम हुआ। उन्होंने आशंका जताई है कि अगर भारत में विदेशी निवेश नहीं बढ़ा तो विकास दर और धीमी हो सकती है। हालत इतनी शर्मनाक हो गयी है कि भारत के बडे भू भाग पर चीन ने ही नहीं अपितु पाक ने भी दशकों से कब्जा करा हुआ है। परन्तु क्या मजाल की देश के हुक्मरान इस दिशा में एक कदम भी ठोस उठा रहे है। देश में एक तरफ कुशासन से त्रस्त है। वहीं दूसरी तरफ नक्सलियों ने सवा सो से अधिक जनपदों में अपनी पेंठ बना कर देश जहां सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ इस्लामी आतंकियों का जाल बंगलादेशी घुसपेटियों व सत्तालोलुपु खुदगर्ज भ्रष्टनेताओं के कारण पूरे भारत को अपने शिकंजे में जकडते जा रहा है। परन्तु क्या मजाल की अमेरिका, चीन व पाक के बाहरी दुश्मनों के दशकों से भारत को तबाह करने के निरंतर षडयंत्रों के बाबजूद तथा नक्सली व आतंकी खतरों से आकंण्ठ घिरे भारत की ईमानदारी से सुध लेने की इस देश के हुक्मरानों, राजनेताओं व प्रबुद्ध जनों को एक पल की भी फुर्सत तक नहीं है। 

Tuesday, February 5, 2013

33 करोड़ हिन्दू देवी देवताओं के सच पूरा

हम लोगों ख़ास कर मुगलों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं. मुस्लिमों की ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें सुनकर तो ऐसा लगता है कि भगवान् ने मूर्खता का सारा ठेका. थोक के भाव में मुगलों को ही दे रखा है. तभी वे, कभी भी अक्ल की बात करते ही नहीं हैं! मुस्लिमों की देखा देखी आज कल उनके सरपरस्त और वर्णसंकर प्रजाति के लोगों को भी (जिसे आधुनिक बोलचाल की भाषा में "सेक्यूलर" भी कहा जाता जाता है) भी ऐसा ही बोलते देखा जा सकता है! 33 कोटि देवी देवता का अर्थ 33 प्रकार होता है और करोड़ भी। लेकिन ऐसा है नहीं और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है! दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख है. 33 "कोटि" देवी-देवता! अब "कोटि" का अर्थ "प्रकार" भी होता है और. "करोड़" भी! तो मूर्खों ने उसे हिंदी में. करोड़ पढना शुरू कर दिया. जबकि वेदों का तात्पर्य. 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है. (उच्च कोटि. निम्न कोटि इत्यादि शब्द) तो आपने सुना ही होगा. जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर प्रकार होता है) ये एक ऐसी भूल है. जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया! इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं! अगर कोई कहता है कि बच्चों को "कमरे में बंद रखा" गया है! और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि... बच्चों को कमरे में "बंदर खा गया" है! कुछ ऐसी ही भूल. अनुवादकों से हुई अथवा दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया. ताकि, इसे हाइलाइट किया जा सके! सिर्फ इतना ही नहीं. हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि. "निरंजनो निराकारो.. एको देवो महेश्वरः" अर्थात इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन... निराकार महादेव हैं...! साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि हिन्दू सनातन धर्म. मानव की उत्पत्ति के साथ ही बना है. और प्राकृतिक है. इसीलिए. हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है. और, प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है. ताकि लोग प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें! जैसे कि..गंगा को देवी माना जाता है. क्योंकि.. गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं..! गाय को माता कहा जाता है. क्योंकि गाय का दूध अमृततुल्य. और, उनका गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं! तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि... तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं.! इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं...! यही कारण है कि. हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में. प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है. क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है. ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है..! कालांतर में ईसाई और इस्लाम सरीखे. बिना सर-पैर वाले सम्प्रदायों के आ जाने के कारण और, उनके द्वारा. प्रकृति का सम्मान नहीं करने के कारण ही. आज हम ग्लोबल वार्मिंग वार्मिंग और, ओजोन परत जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं! अतः. प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है. ! यही कारण है कि. हमारे धर्म ग्रंथों में. सूर्य, चन्द्र. वरुण. वायु. अग्नि को भी देवता माना गया है. और, इसी प्रकार. कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं.! इसीलिए, आप लोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें. क्योंकि. ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं. जो निरंजन... निराकार महादेव हैं...! बाकी के ईसा मसीह वगैरह. को संत या महापुरुष कहा जा सकता है. परन्तु भगवान् नहीं!