दामिनी प्रकरण में उमडे जनाक्रोश की धमक से सहमें हुक्मरानों ने दी संसद हमला काण्ड के गुनाहगार अफजल गुरू को फांसी 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी आतंकी अफजल को दिल्ली के तिहाड़ जेल में आज 9 फरवरी तडके 5बजे कर 25 मिनट पर फांसी दे दी गयी। तिहाड की जेल नम्बर 3 में दी गयी देश की सर्वोच्च संस्था संसद पर पाक द्वारा कराये गये आतंकी हमले के इस दोषी अफजल गुरू को फांसी पर न लटकाये जाने से पूरे देश की जनता देश के हुक्मरानों को वर्षों से धिक्कार रहे थे । जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 में इस आतंकी को फांसी की सजा देने के बाबजूद तमाम प्रक्रिया से गुजरने के बाद 20 अक्टूबर 2006 में इसकी फांसी की सजा पर अंतिम मुहर लग गयी। परन्तु तब से इसको फांसी देने में राष्टपति के समक्ष दया की याचिका के नाम पर लटकाया गया। देश ही नहीं पूरा विश्व संसद पर हमले के फांसी की सजा पाये आतंकी अफजल गुरू को भारतीय हुक्मरानों द्वारा फांसी के फंदे पर न लटकाये जाने से भारतीय हुक्मरानों की नपुंसकता पर हैरान था वहीं इस प्रकरण से जहां जग हंसाई हो रही थी वहीं देश के नागरिकों का आक्रोश निरंतर बढ़ रहा था।
इसके साथ देश के सुरक्षा बलों का मनोबल पर विपरित प्रभाव पढ़ने व आतंकियों को हौसले बढ़ने के बाबजूद देश की सरकार नपुंसकों की तरह मूक बेठी हुई थी। इसी बीच दिल्ली में 16 दिसम्बर को हुए एक छात्रा के साथ हुए सामुहिक बलात्कार के शिकार प्रकरण पर नपुंसक सरकार के खिलाफ 22व 23 दिसम्बर को इंडिया गेट से विजय चैक यानी राष्टपति के दर तक उमडे अभूतपूर्व जनाक्रोश से देश के हुक्मरान न केवल भौचंक्के रह गये अपितु बेहद सहम गये। देश के हुक्मरानों ने जो जनाक्रोश मिश्र, लीबिया व सीरिया सहित संसार के देशों में देखा उन्हें राष्ट्रपति के दर पर आजादी के बाद पहली बार उमडे इस प्रकार के जनाक्रोश ने पूरी तरह हिला कर रख दिया। इसी जनाक्रोश से भयभीत जनभावनाओं को रौंदने वाली व अफजल गुरू जैसे आतंकी को सजा देने में नपुंसक बनी हुई मनमोहनी सरकार ने इसी शुक्रवार 8 फरवरी को गृहमंत्रालय के द्वारा फांसी देने का फेसला लेने के लिए मजबूर हुई और 9 फरवरी की प्रातः इस आतंकी को फांसी की सजा दे दी गयी। इस आतंकी को तिहाड़ जेल में ही दफनाने का निर्णय लिया गया। इस प्रकार दामिनी का बलिदान व जनाक्रोश दोनों ने देश पर लगे इस आतंकी के कलंक से मुक्त कर दिया। गौरतलब है कि इसके पहले राष्ट्रपति ने अफजल गुरु की दया याचिका को 3 फरवरी को खारिज कर दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस आतंकी को फांसी की सजा देने की अपील को ठुकराने के बाद देश की सरकारों ने कई वर्षो तक इसे फांसी के फंदे पर न लटकाये जाने से न केवल देश के नागरिक आक्रोशित थे अपितु इस हमले में संसद की रक्षा व आतंकियों को मार गिराने में अपनी शहादत देने वाले अमर वीर जवानों के परिजनों ने 13 दिसम्बर 2006 को सरकार को अपने सम्मान भी सामुहिक रूप से वापस कर दिये थे। 13 दिसम्बर 2001 को यह आतंकी हमला उस समय हुआ जब संसद का सत्र चल रहा था उस दिन पाकिस्तान के आतंकी लक्शरे ताइबा व जैश मोहम्मद के 5 आतंकियों ने गृहमंत्रालय का स्टीकर लगी कार से दाखिल हो कर अंधाधुंध गोलिया चला कर संसद में घुसने की कोशिश की इसको जांबाज सुरक्षा बलों ने अपनी जान की बाजी लगा कर विफल करके पांचों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उस समय संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी ही नहीं अपितु उप राष्ट्रपति भी संसद में थे। इस हमले में पांचों आतंकियों सहित 12 लोग मारे गये और 18 घायल हो गये। शहीद होने वालों में 5 पुलिस के जवान, एक संसद का सुरक्षा गार्ड व एक माली था। देश में अफजल गुरू के अलावा 5 आतंकी और भी है जिनको फांसी पर लटकाये जाने का इंतजार देश कर रहा है। इनमें राजीव गांधी गांधी के हत्यारों मुरुगन, संथान और पेरारिवलन, पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या करने वाले बलवंत सिंह राजोआना तथा मनिंदर जीत सिंह बिट्टा को निशाना बनाकर बम धमाका करने वाले देविंदर पाल भुल्लर, शामिल हैं। आतंकी अफजल गुरू कश्मीर के बारामूला जनपद का मूल निवासी है। वह एमबीबीएस का प्रथम वर्ष की परीक्षा पास करने के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के लिए तैयारी भी कर रहा था। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का आतंकी बन गया। बीच में उसने सुरक्षा बलों के समक्ष आत्म सम्र्पण भी कर दिया था। वह पाक भी आतंकी टे�र्निग लेने गया। उसके बाद वह अपने मूल स्थान सपोर में अनन्तनाग के आतंकी तारिक के सम्पर्क में आने से वह पुन्न आतंकी गतिविधियों मे ऐसा सम्मलित हुआ कि वह दिल्ली में संसद व दूतावास पर हमला करने के लिए आत्मघाती आतंकी बन गया। उसको फांसी की सजा देने का विरोध न केवल आतंकी संगठन कर रहे थे अपितु जम्मू कश्मीर की सरकार भी उसकी फांसी की सजा माफ करने के लिए केन्द्र सरकार पर निरंतर दवाब बना रही थी।
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